Corruption Case: STF के लिए “?” बने प्रो. विनय पाठक का IET से जुड़ा बड़ा खेल आया सामने, निदेशक विनीत कंसल की गलत नियुक्ति पर बौखलाए शिक्षकों ने खोले तमाम राज

December 11, 2022 by No Comments

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लखनऊ। फिलहाल एसटीएफ के लिए प्रश्न चिह्न (?) बन चुके छत्रपति शाहूजी महाराज कानपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. विनय पाठक के एक से बढ़कर एक कारनामे सामने आ रहे हैं। शिक्षा जगत में किए गए उनके खेलों का सिलसिला रुकने का नाम ही नहीं ले रहा है। अब सोशल मीडिया पर IET (Institute of Engineering and Technology) के डायरेक्टर विनीत कंसल की नियुक्ति को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं। बताया जा रहा है कि उनकी नियुक्ति ही गलत है। विनीत कंसल पर भी प्रो. विनय पाठक की ही मेहरबानी रही है और रातो-रात उनको डायरेक्टर बनाने के लिए कागजों के साथ जमकर हेराफेरी की गई। इस पूरे मामले को लेकर सीनियर प्रोफेसर्स में जमकर रोष व्याप्त है।

इस पूरे मामलो के लेकर आईटी के शिक्षकों और सीनियर प्रोफेसर्स में जमकर आक्रोश है। शिक्षकों का आरोप है कि विनीत कंसल वर्तमान निदेशक आईईटी लखनऊ होने के साथ ही यहां एमसीए डिपार्टमेंट में प्रोफेसर हैं। बताया जा रहा है कि बेसिक क्वालीफिकेशन में कंसल को एमसीए या फिर कंप्यूटर साइंस विषय में एमटेक पीएचडी होना चाहिए, परंतु यह प्रबंधन विभाग आईआईटी दिल्ली में एमटेक व पीएचडी में इनरोल थे ,जोकि एआईसीटीई,गाइडलाइन के अनुसार किसी भी एमसीए विभाग में प्रोफेसर के लिए भी अर्ह योग्यता नहीं है। जबकि उनको सीधे प्रोफेसर बना दिया गया है।

इसी के साथ ये भी दावा किया जा रहा है और आरोप लगाए जा रहे हैं कि कंसल को प्रो. पाठक ने कागजों में तमाम हेराफेरी कर 10 साल की सीनियरटी भी दे दी। केवल यही नहीं, कंसल को नियुक्त करने के लिए तमाम योग्यतम प्रोफेसरों को भी अनदेखा किया गया और उनको सीधे आईईटी का निदेशक बना दिया गया। जबकि वह प्रबंधन विभाग के थे और यह एक इंजीनियरिंग कॉलेज है। इस लिहाज से एक इंजीनियरिंग में पीएचडी वाले को ही निदेशक होना चाहिए। इस गलत नियुक्ति को लेकर कॉलेज के कई वरिष्ठ प्राध्यापको में आक्रोश व्याप्त हो गया है। यही नहीं कंसल को एकेटीयू का प्रतिकुलपति भी बना दिया गया था, साथ ही प्रो. पाठक के कानपुर भेजे जाने के बाद कंसल को कार्यवाहक कुलपति भी बना दिया गया था। जबकि यह नियम विरुद्ध है। बताया जा रहा है कि अभी तक सीनियर प्रोफेसर्स प्रो. पाठक के रसूख के चलते आवाज नहीं उठा पाते थे, लेकिन अब तमाम मामले खुलने के बाद वो भी सामने आ कर सारे राजों से पर्दा उठा रहे हैंष फिलहाल इस पूरे मामले को लेकर विनीत कंसल के बात करने की कोशिश की गई और उनको फोन भी किया गया, लेकिन उनको फोन रिसीव नहीं हुआ। उनकी ओर से किसी भी तरह का बयान मिलने के बाद इसी मंच पर प्रकाशित किया जाएगा।

इसी के साथ प्रो. विनय पाठक पर एकेटीयू में कुलपति रहते हुए तमाम भ्रष्टाचार करने के भी मामले एक-एक कर सामने आ रहे हैं। इसको देखते हुए एसटीएफ के रडार पर यहां के कई अधिकारी व कर्मचारी भी हैं। इसी के साथ गत डेढ़ महीने से फरार चल रहे प्रो. पाठक के खिलाफ एसटीएफ लुकआउट नोटिस जारी करने की तैयारी कर रही है और इसी के साथ ये भी बात सामने आ रही है कि प्रो. पाठक को गिरफ्तार करने के लिए यूपीएसटीएफ शासन से अभियोजन स्वीकृति भी मांगेगी। वहीं जानकारी मिल रही है कि उनका मोबाइल फोन स्विच ऑफ है और उनकी लोकेशन भी नहीं मिल रही है। एसटीएफ ने उन्हें दोबारा ई-मेल करके मोबाइल नंबर, अटेंडेंट का मोबाइल नंबर और लोकेशन भेजने को कहा है।

बता दें कि कुलपति की नियुक्ति सीधे राज्यपाल द्वारा की जाती है, इसलिए उनकी गिरफ्तारी से पहले अभियोजन स्वीकृति जरूरी है। वहीं अगर राज्यपाल द्वारा प्रोफेसर पाठक को हटा दिया जाता है तो अभियोजन स्वीकृति की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। ऐसे में प्रोफेसर की गिरफ्तारी से पहले निगाहें राजभवन पर भी लगी हुई है और मामला दर्ज होने के करीब डेढ़ महीने बाद भी प्रो. पाठक अपने पद पर बने हुए हैं, इसको लेकर राज्यपाल भी सवालों के घेरे में आ गई हैं।

उधर बताया जा रहा है कि विनय पाठक गिरफ्तारी से बचने और जमानत लेने के लिए सुप्रीमकोर्ट पहुंचे हैं। सुप्रीम कोर्ट राज्य सरकार की ओर से कैविएट दाखिल किया है। एसटीएफ के सूत्रों का कहना है कि प्रोफेसर पाठक के खिलाफ जो भी साक्ष्य एकत्र किए गए हैं वह सब न्यायालय में पेश किए जाएंगे और उनको जमानत देने का विरोध किया जाएगा। वहीं सूत्रों ने यह भी बताया कि विनय पाठक ने खुद को सही साबित करने के लिए जो भी निर्णय लिए या कार्रवाई की उसके लिए युनिवर्सिटी लॉ की एक्जीक्यूटिव काउंसिल से पारित कराया। ऐसे में एसटीएफ इसका भी अध्ययन कर रही है कि एक्जीक्यूटिव काउंसिल में शामिल सदस्यों की क्या जिम्मेदारियां थीं? क्या उन जिम्मेदारियों को निभाया गया? अगर नहीं तो इसके लिए जिम्मेदार सिर्फ कुलपति ही हैं या कोई और भी है?

पक्के सुबूत और हाईकोर्ट से मुंह की खाने के बाद भी प्रो. पाठक पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हो सकी है। अगर सूत्रों की मानें तो प्रोफेसर के मामले में यूपी एसटीएफ फूंक-फूंक कर कदम आगे बढ़ा रही है। प्रोफेसर पाठक के खिलाफ एसटीएफ ने बहुत सारे साक्ष्य एकत्र किए हैं। हाईकोर्ट से भी उन्हें राहत नहीं मिली थी। ऐसे में प्रोफेसर पाठक को अब तक कुलपति के पद से न हटाया जाना या उनके खिलाफ कार्रवाई न होने से बड़े-बड़े अधिकारी तक अचरज में हैं। तो वहीं ये भी कहा जा रहा है कि दिल्ली में कुछ सफेदपोशों का भी उनको संरक्षण मिल रहा है। उनके खैर-ख्वाह यूपी के साथ-साथ दिल्ली और उत्तराखंड में भी मौजूद हैं।

अन्य मामलों में भी दर्ज होगी रिपोर्ट
सूत्रों की मानें तो एसटीएफ के पास प्रो. विनय पाठक के खिलाफ अब तक विभिन्न यूनिवर्सिटी में बतौर वीसी रहते हुए किए गए सारे कार्यों व हेरफेर का काला चिठ्ठा सामने आ चुका है। रोज ही एसटीएफ के पास लोग उनके खिलाफ सबूत भेज रहे हैं। एसटीएफ ने मिले सबूतों पर काफी होमवर्क भी किया है, जिसमें खामियां ही खामियां मिली हैं। सूत्रों का कहना है कि एसटीएफ पहले इंदिरानगर में दर्ज मुकदमे में कार्रवाई कर न्यायालय में चार्जशीट दाखिल करेगी उसके बाद दूसरे मामलों को भी खोलेगी। इसके लिए नई एफआईआर दर्ज कराई जाएगी। फिलहाल तो एसटीएफ के एक सवाल बन चुके प्रो. पाठक का कहीं पता नहीं चल रहा है।