Shattila Ekadashi: षटतिला एकादशी पर इस तरह कराएं भगवान विष्णु को स्नान, पढ़ें ये दो कथा

January 24, 2025 by No Comments

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Shattila Ekadashi: सनातन धर्म में माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को षटतिला एकादशी मनाई जाती है. इस दिन भगवान विष्णु के निमित्त व्रत-पूजा कर लोग तिल का दान करते हैं. मान्यता है कि ऐसा करने से मनुष्य को सभी सुखों की प्राप्ति होती है। कुछ लोग बैकुंठ रुप में भी पूजन करते हैं.

आचार्य सुशील कृष्ण शास्त्री बताते हैं कि इस दिन काली गाय तथा काले तिलों के दान का विशेष महत्व है. इस दिन शरीर पर तिल के तेल की मालिश, तिल जल स्नान, तिल जलपान और तिल का पकवान खाने का विशेष महत्व शास्त्रों में बताया गया है. इस दिन तिलों से हवन कर रात जागरण करना चाहिए.

भगवान का इस तरह कराएं स्नान

शास्त्रों के अनुसार इस दिन पंचामृत में तिल मिलाकर भगवान को स्नान कराना चाहिए. साथ ही तिल से जुड़ी हुई चीजें खाएं व ब्राह्मणों को दान करें. इस दिन 6 तरह के तिल का इस्तेमाल किए जाने के कारण ही इसे षट्तिला एकादशी के नाम से पुकारा जाता है.

श्रीकृष्ण ने जानें क्या बताया इस एकादशी का महत्व?

शास्त्रों के अनुसार श्रीकृष्ण,युधिष्ठिर को इस एकादशी का महत्व बताते हुए कहते हैं कि हे नृपश्रेष्ठ!माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी ‘षटतिला’ या ‘पापहारिणी’के नाम से विख्यात है, जो सब पापों का नाश करने वाली है। इस दिन तिल से बने हुए व्यंजन या तिल से भरा हुआ पात्र दान करने से अंनत पुण्यों की प्राप्ति होती है। पदमपुराण में वर्णित है कि तिलों के बोने पर उनसे जितनी शाखाएं पैदा होती हैं, उतने हजार वर्षों तक दान करने वाला व्यक्ति स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होता है। षटतिला एकादशी का व्रत करने से मनुष्य की आध्यात्मिक उन्नति होती है और सभी प्रकार के पापों से मुक्ति प्राप्त होती है। जितना पुण्य कन्यादान, हजारों वर्षों की तपस्या और स्वर्ण दान से मिलता है, उससे अधिक फल प्राणी को षटतिला एकादशी का व्रत करने से मिलता है। यह व्रत परिवार के विकास में सहायक होता है और मृत्यु के बाद व्रती को विष्णुलोक की प्राप्ति होती है।

ब्राह्मणी की कथा

इस एकादशी को लेकर कई धार्मिक कथाएं प्रचलित हैं. मान्यता है कि प्राचीन काल में पृथ्वी पर एक विधवा ब्राह्मणी रहती थी। वह भगवान विष्णु के प्रति अटूट श्रद्धा रखती थी और भक्ति भाव से उनके सभी व्रत और पूजन किया करती थी, पर वह ब्राह्मणी कभी भी किसी को अन्न दान में नहीं दिया करती थी। एक दिन भगवान विष्णु उस ब्राह्मणी के कल्याण के लिए स्वयं उसके पास भिक्षा के लिए गए, तब उस ब्राह्मणी ने मिट्टी का एक पिंड उठाकर भगवान विष्णु के हाथों में रख दिया। उस पिंड को लेकर भगवान विष्णु अपने धाम, बैकुंठ लौट आए।

कुछ समय के बाद उस ब्राह्मणी की मृत्यु हो गई और वो बैकुंठ धाम पहुंची। वहां उस ब्राह्मणी को एक कुटिया और एक आम का पेड़ मिला। खाली कुटिया को देख वो ब्राह्मणी बहुत निराश हुई और भगवान विष्णु के पास जाकर पूछा कि प्रभु मैने तो पूरे जीवन आपकी पूजा-अर्चना की। पृथ्वी पर मैं एक धर्मपरायण स्त्री थी, फिर क्यों मुझे ये खाली कुटिया क्यों मिली? भगवान विष्णु ने उस ब्राह्मणी को उत्तर दिया कि तुमने अपने जीवन में कभी अन्नदान नहीं किया था, इसलिए ही तुमको ये खाली कुटिया प्राप्त हुई। तब उस ब्राह्मणी को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने इसका उपाय पूछा। भगवान विष्णु ने बताया कि जब देव कन्याएं आपसे मिलने आए तो आप द्वार तभी खोलना जब वे षटतिला एकादशी के व्रत का विधान बताएं। उस ब्राह्मण स्त्री ने वैसा ही किया और षटतिला एकादशी का व्रत रखा। इस व्रत के प्रभाव से उस ब्राह्मण स्त्री की कुटिया अन्न और धन से भर गई। इसलिए षटतिला एकादशी के दिन अन्न दान करने का बहुत महत्व माना जाता है।

गरीब लकड़हारे की कथा

एक अन्य कथा के मुताबिक, मान्यता है कि प्राचीन काल में वाराणसी में एक गरीब लकड़हारा रहता था. वह गरीबी से इस तरह से परेशान था कि भूखा ही आसमान के नीचे अपने बच्चों के साथ भूखा सोने के लिए मजबूर रहता था. वह केवल जंगल की लकड़ी के भरोसे किसी तरह अपना गुजर-बसर करता था और दो जून की रोटी का बंदोबस्त करता था लेकिन जब लकड़ी नहीं मिलती थी तो पूरे परिवार को भूखे ही सोना पड़ता था.

एक दिन वह किसी साहूकार के घर पर लकड़ी पहुंचाने के लिए गया था. वहां जाकर उसने देखा कि किसी उत्सव की तैयारी बहुत जोर-शोर से की जा रही है. यह सब देखकर उसने साहूकार से पूछा कि सेठ जी क्या ये किसी पूजा की तैयारी हो रही है. इस पर सेठ जी ने बताया कि यह षट्तिला व्रत की तैयारी की जा रही है. इसके बाद लकड़हारे ने इसका महत्व जानने के लिए पूछा कि इस व्रत का क्या लाभ है. इस पर साहूकार ने बताया कि इस व्रत को करने से घोर पाप, रोग, हत्या या फिर जीवन में कोई भी कष्ट हो वो दूर हो जाते हैं और धन तथा सम्पत्ति की प्राप्ति होती है.

इस पर लकड़हारे ने भी इस व्रत को करने की ठानी और घर जाकर इसके बारे में अपनी पत्नी को बताया. इस पर उसकी पत्नी भी इस व्रत को करने के लिए तैयार हो गई. तो वहीं लकड़हारा उस दिन जो पैसे उसे मिले थे, उसी से एकादशी के लिए सामान खरीद लाया और फिर विधि पूर्वक व्रत किया. इस व्रत को करने से वह भी धनवान हो गया और उसकी गरीबी खत्म हो गई.

DISCLAIMER:यह लेख धार्मिक मान्यताओं व धर्म शास्त्रों पर आधारित है। हम अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देते। किसी भी धार्मिक कार्य को करते वक्त मन को एकाग्र अवश्य रखें। पाठक धर्म से जुड़े किसी भी कार्य को करने से पहले अपने पुरोहित या आचार्य से अवश्य परामर्श ले लें। KhabarSting इसकी पुष्टि नहीं करता।

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